टमाटर की व्यबसायिक खेती सम्पूर्ण जानकारी

टमाटर की व्यबसायिक खेती Commercial Tomato Farming in Hindi

Tamatar ki kheti Tomato Farming in Hindi
टमाटर की व्यबसायिक खेती (Commercial Tomato Farming in Hindi)

    परिचय (Introduction)

    टमाटर एक ऐसी सब्जी या फल है जिसकी मांग बाजार में सालभर बानी रहती है।
    यह सब्जी के रूप में तथा प्रसंस्करण उद्योग में सैंकड़ो तरह के खाद्य सामग्री प्रस्तुत करने में प्रयोग होता है।
    40 से 45 दिन के अंदर पैदावार हासिल करके अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त करने के लिए टमाटर की फसल सबसे अच्छी मानी जाती है।
    टमाटर की खेती में जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी, पौध तैयारी, खाद प्रबंधन तथा बाजार की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करके सफलता पूर्वक इसकी खेती किया जा सकता है।
    टमाटर एक गर्म जलवायु की फसल है, इसके लिए गर्म और ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। यह अधिक ठंड और उच्च आर्द्रता का सामना नहीं कर सकता।
    21 से 24 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान टमाटर की खेती के लिए आदर्श माना जाता है।

    टमाटर की खेती के लिए भूमि की आवश्यकताएं (Land and Soil Requirements for Tomato Farming in India)

    टमाटर की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में सफलता पूर्वक किया जा सकता है, जिसमे जलधारण क्षमता अच्छा हो।
    खनिज तत्व से भरपूर मिट्टी पर टमाटर की बढ़वार और पैदावार अछि होती है।
    किसान भाइयों को ऐसे भूमि का चयन करना चाहिए जिसमें पानी का ठहराव ना हो या जल निकाशी की अच्छे से सुविधा किया जा सके।
    मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। थोड़ी अम्लीय मिट्टी में पौधे का बढ़वार अछि होती है।
    टमाटर की रोपाई करने से पहले मिट्टी का पीएच मान जांच ले, अगर इसमें कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो इसे सुधार ले।

    टमाटर की खेती के लिए बीजों का चयन (Choosing Right Seeds for Tomato Farming in India)

    किसी भी फसल की खेती करने के लिए बीज के बारे में सही जानकारी होना अति आवश्यक है। टमाटर के बीज को निम्नलिखित आधार पर बांटा जाता है।
    A. आनुवंशिकी के आधार पर
    1. देसी बीज
    2. हाइब्रिड/संकर बीज
    B. फसल की ऊंचाई के हिसाब से
    1. झाड़ीनुमा किस्म (Determinate Tomato Variety)- इनकी ऊंचाई 1.5 से 2 फिट की होती है। टमाटर के इन किस्मों के लिए सहारे की जरूरत नहीं होती। लगभग 40 से 45 दिन में उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है।
    2. मध्यम ऊंचाई किस्म (Semi Determinate Tomato Variety)- यह लाता वर्गीय ऊंचाई 4 से 6 फिट तक होती है। फसल को सहारे की आबश्यक्ता होती है। इन किस्मों की पहली तुड़ाई 60 से 65 दिन बाद प्रारम्भ होती है।
    3. लता वर्गीय किस्म (Indeterminate Tomato Variety)- इनकी ऊंचाई 25 से 30 फिट तक होती है। इसकी फसल लगभग 12 से 14 महीने तक चलती है, अर्थात किसान इससे कम से कम 8-9 महीने तक लगातार उत्पादन प्राप्त कर सकता है।
    लता वर्गीय टमाटर के किस्मों को खुले खेत मे सफलता पूर्वक नही किया जा सकता।
    लता बर्गीय टमाटर की किसमे मुख्य रूप से पॉलीहाउस अंदर किया जाता है और इसके लिए किसान भाइयों को अलग से प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है।

    टमाटर की खेती प्रारंभ करने का उचित समय (Right Time To Start Tomato Farming)

    हमारे देश मे टमाटर की खेती सालभर किया जाता है। परंतु देश के भिन्न भिन्न प्रान्तों में जलवायु और तापमान भिन्न होने के कारण इसे इसकी खेती अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग समय पर प्रारंभ किया जाता है।
    देश के उत्तरी मैदानों में (बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा इत्यादि) तीन फसलें ली जाती हैं लेकिन अत्यधिक ठंढ प्रभावित क्षेत्र जैसे जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में रबी की फसल लेना संभव नहीं होता है।
    भारत के उत्तरी क्षेत्रों में खरीफ ऋतु के फसल को जुलाई में, रबी ऋतु की फसल को अक्टूबर - नवंबर में और जायद की फसल को फरवरी के महीनों में रोपाई की जाती है।
    मध्य भारत मे सिंचाई के सुबिधा अनुसार सालभर टमाटर की खेती किया जाता है।
    भारत के दक्षिणी मैदानों में जहां ठंढ का कोई खतरा नहीं है, परंतु अत्यधिक गर्मी और उच्च आर्द्रता के कारण जायद का फसल लेना संभब नही हो पाता है।

    टमाटर की नर्सरी तैयार करने की विधि (Tomato Nursery Preparation Guide)

    टमाटर की खेती आम तौर पर पौधशाला में पौध तैयार करने के पश्चात खेत मे रोपाई किया जाता है।
    एक एकड़ जमीन में टमाटर की खेती करने के लिए 180 से 200 ग्राम देसी बीज या 60 से 70 ग्राम हाइब्रिड/संकर बीज की आवश्यकता होती है।
    पौधे को सुरूवाती समय में बीज जनित रोगों से बचाने के लिए 3 ग्राम थिराम/2 ग्राम बविस्टिन प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से या किसी अच्छे फफूंदीनाशक से बीज उपचारित किया जाता है।
    दो प्रकार से टमाटर की नर्सरी तैयार किया जा सकता है।

    1. प्रो ट्रे नर्सरी (Portray Tomato Nursery)

    यह सब्जियों की पौध तैयार करने का आधुनिक तरीका है जिसमे नुरसेरु का प्रबंधन कार्य बहुत आसान होता है।
    प्रो ट्रे नर्सरी में बीज का अंकुरण अधिक तथा एक समान होता है। इसमें प्रस्तुत सभी पौधे स्वस्थ और ऊंचाई में एक समान होते हैं।
    इसमें किसान भाइयों को थोड़ा आर्थिक लागत जुड़ जाता है परंतु प्रो ट्रे नर्सरी पद्धति में तैयार पौध के जड़ संरचना मजबूत होने के कारण खेत मे लगाने के पश्चात इनका तेजी से बढ़वार होता है।

    2. रेज बेड नर्सरी (Raised Bed Tomato Nursery)

    जमीन में रेज बेड बनाकर नर्सरी तैयार किया जाता है। ज्यादातर किसान यह पद्धति को अपनाते हैं, क्योंकि यह पौध तैयार करने का पारंपरिक बिधि है।
    आम तौर पर 3 फिट चौड़ा और 6 फिट लंबा आकार का बेड बनाकर ऊपर 6 इंच के दूरी पर आधा इंच गहरा लकीर खींचा जाता है।
    लकीरों के अंदर उचित दूरी पर बीज डालकर हल्के से मिट्टी ढक दिया जाता है। बेड को सूखे घांस या पुआल से ढक दिया जाता है ताकि कड़ी धूप में भी उचित नमी बनाये रहे।
    टमाटर की नर्सरी करीब 20 से 25 दिन में रोपाई के लिए तैयार हो जाता है। रोपाई करने से पहले इसके जड़ को ट्राइकोडर्मा, कार्बेंडज़ीम या किसी अच्छे फफूंदीनाशक दवा से आधे घंटे के लिए डुबों कर रख दिया जाता है ताकि खेत में रोपाई के पश्चात किसी भी फफूंद जनित जड़ संबंधित बीमारियों से बचाया जा सके।

    टमाटर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Land Preparation for Tomato Farming in India)

    भूमि को दो से तीन बार रोटावेटर या हैरो के सहायता से अच्छे तरीके से जोताई करना होता है ताकि मिट्टी भुरभुरा हो और फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाये।
    15 से 20 सेंटीमीटर गहराई जमीन की जोताई पर्याप्त होती है।
    भूमि की अंतिम जोताई करते समय 20-25 टन सढ़े हुए गोबर का खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलाएं।
    टमाटर की खेती के लिए 120 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस, 50 किलो पोटाश उर्बरक प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आबश्यक होती है।
    60 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस और 25 किलो पोटाश जमीन की अंतिम जोताई समय या खेत मे पौध रोपाई से पहले प्रयोग किया जाता है।
    बचे हुए उर्वरक में से 30 किलो नाइट्रोजन और 12.5 किलो पोटाश रोपाई के 25-30 दिन बाद, 55-60 दिन बाद दो चरणों में प्रयोग करें।
    जोताई के पश्चात 2 से तीन फीट के दूरी पर 1.5 से 2 फिट ऊंचाई के बेड तैयार करें ताकि बरसात के मौसम में जल निकाशी की ब्यबस्था को सुनिश्चित किया जा सके।
    बेड की दूरी और बनावट टमाटर की किस्मों और बनस्पतिक संरचना के ऊपर निर्भर करता है।

    टमाटर की खेती में पौध रोपाई पद्धति (Transplanting Tomato Nursery in Field)

    आम तौर पर टमाटर की खेती में झाड़ीनुमा किस्मों के लिए पौध से पौध की दूरी 40-45 सेंटीमीटर (1.5 फिट) और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60-75 सेंटीमीटर (2-2.5 फिट) रखा जाता है।
    लता वर्गीय किस्मों में रेज बेड के ऊपर यह पौध से पौध की दूरी 1 फिट तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 फिट रखा जाता है। एक बेड से दूसरे बेड की दूरी 4 फिट का होता है जिसमे 1 फिट की नाली छोड़ा जाता है।
    टमाटर एक सम्बेदनसिल फसल होने के कारण रोपाई के पश्चात सिंचाई की ब्यबस्था कर देना चाहिए।

    टमाटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण (Herbs Control in Tomato Farming)

    टमाटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए आच्छादन या मल्चिंग का पद्धति सबसे सुविधाजनक होता है।
    सूखे घास, पुआल, फसल अवशेषों या इंटर क्रोपिंग के माध्यम से जैविक आच्छादन किया जाता है जिससे मिट्टी में हमेसा पर्याप्त नमी बनी रहती है तथा मिट्टी नरम रहती है।
    अगर मल्चिंग बिधि संभब ना हो पाए तो कम अवधि वाले टमाटर किस्मों के लिए मुश्किल से एक या दो बार हाथों से खरपतवार नियंत्रण करना पड़ता है।
    लंबे अवधि वाले लता वर्गीय किस्मों के लिए हर 3 या 4 सप्ताह में निराई गुड़ाई की अबश्यकता होती है ताकी मिट्टी के अंदर वायु का प्रबाह होता रहे और फसल की बढ़वार अच्छे से होते रहे।
    टमाटर का पौधा सम्बेदनसिल होने के कारण फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवा का प्रयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों का सलाह अबश्य लेना चाहिए।

    टमाटर की खेती में सिंचाई (Watering and Irrigation in Tomato Farming)

    1. पारंपरिक बिधि से सिंचाई (Flood Irrigation)

    सिंचाई के इस पद्धति में खरपतवार की समस्या पैदा होती है। जरूरत मात्रा से अधिक मात्रा में पानी होने के कारण फसल के गुणबत्ता पर परक पड़ता है।

    2. टपक बिधि सिंचाई (Drip Irrigation)

    इसमें कुल 90 प्रतिशत पानी की बचत होती है। पौधे के जरूरत के मुताबिक मिट्टी में नमी नियंत्रण किया जा सकता है जिससे फसल की गुणबत्ता अछि होती है। टपक बिधि सिंचाई पद्धति में खरपतवार समस्या दिखाई नहीं देती।

    3. फवारा सिंचाई (Sprinkler irrigation)

    मुख्य रूप से गर्मी के मौसम में तापमान को नियंत्रक करने के लिए फवारा बिधि में सिंचाई पद्धति अबलम्बन किया जाता है।
    इससे पानी का बचत होने के साथ फसल के गुणवत्ता में भी सुधात आती है।
    * परंतु झाड़ीनुमा वर्गीय टमाटर के किस्मों में फवारा बिधि सिंचाई दुबिधा साबित हो सकती है। क्योंकि टमाटर मिट्टी के संस्पर्श में आने के कारण फफूंद जनित बीमारियों का आक्रमण होता है।

    टमाटर की खेती में प्रयोग होने वाले उर्वरक (Fertilizer Requirements for Tomato Farming in India)

    टमाटर के फसल में फल उत्पादन और गुणवत्ता पोषक तत्वों की उपलब्धता और सही मात्रा में उर्वरक प्रयोग करने के आधार पर निर्भर करता है। इसलिए आवश्यकता के अनुसार संतुलित उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
    उर्वरकों और पोषकतत्वों की अबश्यकता भिन्न भिन्न भूमि में बिभिन्न मात्रा में जरूरत होती है।
    किसान भाइयों को अपने खेत मे टमाटर की खेती करने से पहले मृदा परीक्षण अबश्य कर लेना चाहिए तथा नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक से सलाह जरूर कर लें।
    टमाटर की सफलता पूर्वक खेती करने के लिए एक मानक के रूप में निम्नलिखित मात्रा में पोषकतत्वों की अबश्यकता होती है।
    नाइट्रोजन- पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन फसल की अछि बढ़वार तथा वानस्पतिक विकास को सुनिश्चित करता है।
    फॉस्फोरस- फॉस्फोरस पोषकतत्व पौधे के ताने को मजबूत, अधिक संख्या में साखा निकालने में तथा संयंत्र शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
    भूमि प्रस्तुति समय मिट्टी में मोनो अमोनियम फॉस्फेट (MAP) का उपयोग किया जाता है जो फसल रोपाई के पश्चात पर्याप्त फास्फोरस की आपूर्ति करता है।
    पोटाश- पोटाश पोषकतत्व फलों की गुणवत्ता, फलों के आकार, रंग और स्वाद को बढ़ाती है। फसल के रोगप्रतिरोधक क्षमता को बृद्धि करने के लिए यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    * आधा नाइट्रोजन(N), आधा पोटाश और पूर्ण फॉस्फोरस (P2O5) रोपाई के समय दिया जाता है। शेष नाइट्रोजन और पोटाश रोपाई के 25-30 दिन और 55-60 दिनों के बाद दिया जाता है।

    टमाटर की खेती में किट तथा रोग प्रबंधन (Pests and Disease Management in Tomato Farming)

    टमाटर की खेती में कई तरह के किट और बीमारियों का प्रकोप दिखाई देता है। किसान भाइयों को टमाटर के खेती में लगने वाले सभी तरह के बीमारियों का कारण तथा बचाव के तरीके के बारे में सही जानकारी होना आबश्यक है।
    टमाटर की खेती में निम्नलिखित कारणों के वजह से रोग लगते हैं।
    1. रोग संक्रमित बीज- इससे बचने के लिए स्वस्थ प्रमाणित रोग रहित बीजों का चयन करें।
    2. संक्रमित मिट्टी- बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं। मिट्टी सोधन करें।
    3. प्रतिकूल मौसम (अत्यधिक बर्षा, गर्मी या ठंड के कारण)।

    A. टमाटर के फसल में बैक्टीरिया जनित बीमारी (Bacterial Disease in Tomato Farming)

    1. बैक्टेरियल विल्ट (Bacterial Wilt)

    यह एक मिट्टी जनित बीमारी है जो रालस्टोनिया सोलनसीरुम बैक्टेरिया द्वारा संक्रमित होता है। अत्यधिक गर्मी और नमी के वजह से यह बीमारी फैलता है।
    इस बीमारी का रोकथाम करना बहुत मुश्किल है, परंतु फसल चक्र, मिट्टी सोधन, संक्रमित पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल देना जैसे बचाव के तरीके अपनाकर परवर्ती दूसरे फसलों को बैक्टेरियल विल्ट बीमारी से बचाया जा सकता है।

    2. फ्यूजेरियम विल्ट/ झुलसा रोग (Fusarium Wilt)

    बैक्टेरियल विल्ट की तरह फ्यूजेरियम विल्ट भी अत्यधिक गर्मी के कारण फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोराम (Fusarium oxysporum) बैक्टीरिया द्वारा संक्रमित होता है।
    पौधे के निचले पत्ते और साख झुलस कर हल्के पीले रंग के दिखाई देते हैं। धीरे धीरे पूरा पौधा झुलस कर मर जाता है।
    किसी भी तरह के रासायनिक दवाओं का प्रयोग से इसका उपचार सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता।
    बचाव के लिए संक्रमित पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल दे, फसल चक्र अपनाएं, मिट्टी सोधन करें।

    3. बैक्टेरियल स्पॉट (Bacterial Spot)

    इससे फल और पत्तियों में छूट छूटे काले धब्बे बन जाते हैं। फसल की बढ़वार रुक जाती है। फल की गुणबत्ता खराब होती है तथा बाजार में बेचने लायक नही बचती।
    उपचार के लिए प्रमाणित बीजो का चयन करें, आबश्यक मात्रा से अधिक सिंचाई ना करें, कॉपर आधारित फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    B. टमाटर के फसल में भुताणु संक्रमित बीमारी (Viral Disease in Tomato Farming)

    4. मरोडिया बीमारी (Tomato Yellow Leaf Curl Virus)

    यह मुख्य रूप से एक वायरस द्वारा संक्रमित होता है जो सफेद मक्खियों के सरीर में पाया जाता है। इससे पौधे का बढ़वार, पैदावार, फल फूल बनना रुक जाता है और देखते ही देखते कुछ हफ़्तों में पूरे खेत में फैलकर फसल बर्बाद हो जाता है।
    बचाव के लिए फसल में सफेद मक्खी, एफिड जैसे रस चूसक कीटों का नियंत्रण करें।

    5. विल्ट वायरस (Tomato Spotted Wilt Virus)

    यह बीमारी एक रस चूसक किट थ्रिप्स के कारण फसल में संक्रमित होता है। पौधे के पत्तियां और फल में हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और बाद में फल सड़कर खराब हो जाते हैं।
    बचाव के लिए संक्रमित पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल दे, नियमित रूप से खरपतवार नियंत्रण करें, रस चूसक कीटों का नियंत्रण करें।

    C. टमाटर के फसल में फफूंद जनित बीमारी (Fungal Disease in Tomato Farming)

    6. उकठा (Damping Off)

    यह एक फफूंद जनित बीमारी है जिससे बीज अंकुरण या रोपाई के तुरंत पश्चात पौधे का तना सड़कर नीचे गिरने लगते हैं।
    बचाव- बिजाई या रोपाई करने से पहले अच्छे से फफूंदीनाशक दवाई(ट्राइकोडर्मा, कार्बेंडज़ीम इत्यादि) से बिजउपचार, जड़-उपचार करें।

    7. अर्ली ब्लाइट (Early Blight)

    सुरूवाती समय में यह पुराने पत्तियों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। अत्यधिक गर्मी और नमी के कारण यह पूरे पौधे में तेज़ी से संक्रमित होते हैं।
    बचाव के उपाय-
    रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
    फसलचक्र अपनाएं।
    फसल में आबश्यक मात्रा से अधिक सिंचाई ना करें।
    मेंकोजेब या कॉपर फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    8. लेट ब्लाइट (Late Blight)

    टमाटर के पौधे के सभी हिस्सों में जैसे पत्ते, तना और फलों में भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इससे फसल का गुणबत्ता और पैदावार घट जाता है।
    बचाव के तरीके-
    रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
    फसलचक्र अपनाएं।
    संक्रमित पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकाल दे।
    फसल में आबश्यक मात्रा से अधिक सिंचाई ना करें।
    मेंकोजेब या कॉपर फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    9. बुक-ऑय (BuckEye Rot)

    टमाटर के फल मिट्टी के संस्पर्श में आने के कारण गोलाकार धब्बे बनते हैं। यह बीमारी एक फफूंद पैथोपोरा (Phytophthora parasitica) द्वारा संक्रमित होता है।
    बचाव के उपाय-
    बेड के ऊपर फसल लगाए और आच्छादन(Mulching) करें।
    मिट्टी में आबश्यक मात्रा में नमी बनाए रखें।
    फसलचक्र अपनाएं।
    फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    10. सेप्टोरिया लीफ स्पॉट (Septoria Leaf Spot)

    पौधे के पत्तियां और तने पर भूरे रंग के छीटें दिखाई देते हैं। पौधे के निचले भाग मिट्टी के संस्पर्श में आने के कारण यह फफूंद जनित रोग संक्रमित होता है। इससे टमाटर के बढ़वार और पैदावार में घाटा होता है।
    बचाव के उपाय-
    रोग सहनसिल किस्मों के चयन करें।
    बेड के ऊपर फसल लगाए और आच्छादन(Mulching) बिधि अपनाएं।
    मिट्टी में आबश्यक मात्रा में नमी बनाए रखें।
    फसलचक्र अपनाएं।
    फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    11. एंथ्रेक्स नोज (Anthracnose)

    मुख्य रूप से पके हुए टमाटर के फल में गोलाकार सुनहरी काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे समय के साथ बड़े होकर पूरे फल को नष्ट कर देते हैं। इससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है।
    बचाव के तरीके-
    रोग प्रतिरोधी प्रामाणिक किस्मों का चयन करें।
    फसलचक्र अपनाएं।
    फसल में आच्छादन(Mulching) बिधि अपनाएं।
    फसल में आबश्यक मात्रा से अधिक सिंचाई ना करें।
    मेंकोजेब या कॉपर फफूंदीनाशक दवाइयों का प्रयोग करें।

    12. निमोटोड (Root Knot Nematodes)

    निमोटोड मिट्टी में स्थित एक अति सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो पौधे के जड़ में गांठ बनाकर पोषकतत्व के प्रबाह को रोक देते हैं।
    इससे पौधे का बढ़वार और पैदावार रुक जाता है।
    बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं, मिट्टी सोधन करें तथा निम ख़ली और नीम आधारित उर्वरकों का प्रयोग करें।

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